प्रारंभिक जीवन: मोहम्मद रफी जी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को कोटला सुल्तान सिंह, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वे भारतीय फिल्म संगीत के एक महान गायक थे। उनका संगीत करियर 1940 के दशक में शुरू हुआ और 1980 तक चला।
आरंभिक जीवन
आरंभिक स्कूली पढ़ाई कोटला सुल्तान सिंह में हुई। जब मोहम्मद रफी करीब सात साल के हुए तब उनका परिवार रोजगार के सिलसिले में लाहौर आ गया था। इनके परिवार का संगीत से कोई खास लगाव नहीं था। जब रफ़ी छोटे थे तब इनके बड़े भाई की नाई की दुकान थी, रफ़ी का काफी वक्त वहीं पर गुजरता था। ऐसा कहा जाता है कि रफ़ी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर बाबा का पीछा किया करते थे जो उधर से गाते हुए गुज़रता था। उसकी आवाज रफ़ी साहब को पसन्द आई और रफ़ी उसकी साहब उसकी नकल करने की कोशिश करते थे। उनकी नकल में रफी साहब को गाते देखकर लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी। लोग नाई की दुकान में उनके गाने की तारीफ़ करने लगे। लेकिन इससे रफ़ी साहब को कुछ लोगों की तारीफ के सिवा कुछ नहीं मिला। इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा। एक बार आकाशवाणी (उस समय ऑल इंडिया रेडियो) हुआ करता था, लाहौर में उस समय के बहोत ही मशहूर गायक-अभिनेता कुन्दन लाल सहगल अपना प्रदर्शन करने आए थे। इसको सुनने के लिए मोहम्मद रफ़ी और उनके बड़े भाई भी गए हुए थे। बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाना गाने से मना कर दिया। रफ़ी साहब के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ के गुस्से को शांत करने के लिए मोहम्मद रफ़ी साहब को गाने का मौका दिया जाय। उनको इजाज़त मिल गई और 13 साल की उम्र में मोहम्मद रफ़ी साहब का ये पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था लोगों को बहुत पसंद आया। प्रेक्षकों में श्याम सुन्दर, जो उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार थे, ने भी उनको सुना और काफी प्रभावित हो गए। उन्होने मोहम्मद रफ़ी साहब को अपने लिए गाने का न्यौता दिया। 1944 में वे मुंबई आए और यहाँ उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी असल पहचान बनाई। उनके शुरुआती गीतों में से एक "तेरा खिलौना टूटा" फिल्म "अनमोल घड़ी" (1946) का था।
शैलियां:
उन्होंने विभिन्न शैलियों में गाया, जिसमें भजन, ग़ज़ल, रुमानी गीत, देशभक्ति गीत और कई अन्य शामिल हैं। उनकी आवाज़ की मिठास और उनके गायन की विविधता ने उन्हें हर संगीत प्रेमी के दिल में एक खास जगह दिलाई। उन्होंने नौशाद, शंकर-जयकिशन, एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन, ओ.पी. नैयर और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों के साथ भी काम किया।
पुरुस्कार:
मोहम्मद रफी को छह बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला और 1965 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने जीवन में हजारों गाने गाए, जिनमें "चौधवीं का चांद हो", "तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं", "क्या हुआ तेरा वादा" और "आज मौसम बड़ा बेईमान है" जैसे अनगिनत हिट गाने शामिल हैं।
31 जुलाई 1980 को रफी जी का निधन हो गया, अपने चाहने वालों की आंखों को नम कर वो चले गए,
अब भी लोग उनकी याद में उनके द्वारा गाए गए इस गाने को ज़रूर सुनते और गुनगुनाते है ("दिल का सुना साज़ तराना ढूंढेगा, मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढेगा")
लेकिन उनकी मधुर आवाज और अनमोल योगदान उन्हें हमेशा लोगों के दिलों में ज़िन्दा रखेगा।
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