पृथ्वीराज चौहान,"चौहान" वंश के राजा थे।उन्होंने आज के समय के उत्तर-पश्चिमी भारत पर शासन किया। उन स्थानों को आज के समय में राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के नाम से जानते हैं।
नाम: पृथ्वीराज चौहान
अन्य नाम: राय पिथौरा
जन्म स्थान और तिथि: गुजरात 1166 ईस्वी।
शासन काल: 1178–1192
पृथ्वीराज का जन्म चौहान राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरादेवी के घर हुआ था। पृथ्वीराज और उनके छोटे भाई हरिराज दोनों का जन्म गुजरात में हुआ था जहाँ उनके पिता सोमेश्वर को उनके रिश्तेदारों ने चालुक्य दरबार में पाला था। बाद में पृथ्वीराज गुजरात से अजमेर चले गए। जब राजा सोमेश्वर की मृत्यु 1177 में हुई थी, तब पृथ्वीराज चौहान लगभग 11 वर्ष के थे। पृथ्वीराज, जो उस समय नाबालिग थे उन्होंने अपनी माता जी के साथ राजगद्दी पर विराजमान हुए। इतिहासकार दशरथ शर्मा लिखते हैं, पृथ्वीराज ने 1180 में प्रशासन का वास्तविक नियंत्रण ग्रहण कर लिया था।
शासनकाल के शुरुआती दौर में पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिन्दू राज्यों के खिलाफ़ सैन्य सफलता हासिल की। खास तौर पर वह चन्देल राजा परमर्दिदेव के ख़िलाफ़ सफल रहे थे। उन्होंने ग़ौरी राजवंश के शासक मोहम्मद ग़ौरी के प्रारम्भिक आक्रमण को भी रोका था।
दिल्ली में अब खण्डहर हो चुके किला राय पिथौरा के निर्माण का श्रेय पृथ्वीराज को दिया जाता है।
•12वीं शताब्दी के अंत तक ग़ज़नी आधारित ग़ोरी वंश ने चौहान राज्य के पश्चिम (West) के क्षेत्र को नियंत्रित कर लिया था।
•1175 में जब पृथ्वीराज एक बच्चा थे, मोहम्मद ग़ोरी ने सिंधु नदी को पार कर लिया और मुल्तान पर कब्जा कर लिया।
•1178 में उसने गुजरात पर हमला किया, जहां पर उस समय चालुक्यों (सोलंकियों) का शासन था। चौहानों को ग़ोरी के आक्रमण का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि गुजरात के चालुक्यों ने 1178 में कसरावद के युद्ध में मोहम्मद गौरी को हरा दिया था।
•अगले कुछ सालों में मोहम्मद ग़ोरी ने पेशावर, सिंध और पंजाब को जीतते हुए, चौहानों के पश्चिम (West) में अपनी शक्ति को मजबूत कर लिया था।
•गौरी ने अपना अड्डा ग़ज़नी से पंजाब कर दिया और अपने साम्राज्य का विस्तार पूर्व (East) की ओर करने की कोशिश करने लगा। इस कारण उसे पृथ्वीराज के साथ संघर्ष करना पड़ा।
(तराईन का प्रथम युद्ध)
1190–1191 के दौरान, गौरी ने चौहान क्षेत्र पर आक्रमण किया और तबरहिन्दा जिसे तबर-ए-हिन्द (बठिंडा) भी कहा जाता था पर कब्जा कर लिया। उन्होंने इसे 1,200 घुड़सवारों के समर्थन वाले ज़िया-उद-दीन, तुलक़ के क़ाज़ी के अधीन रखा था।
जब पृथ्वीराज को इस हमले के बारे में पता चला, तो वो दिल्ली के गोविंदराजा सहित अपने सामंतों के साथ तबरहिन्दा की ओर रवाना हुए।
•तबरहिन्दा पर विजय प्राप्त करने के बाद गौरी की योजना अपने घर लौटने की थी लेकिन जब उन्होंने पृथ्वीराज के बारे में सुना, तो उन्होंने लड़ाई का फैसला किया। गौरी भी एक सेना के साथ चल पड़े और तराईन में पृथ्वीराज की सेना का सामना किया। लड़ाई में, पृथ्वीराज की सेना ने गौरी की सेना को हरा दिया।
(तराईन का ददूसरी युद्ध)
ग़ोरी ने वापस ग़ज़नी लौटने का फैसला किया और अपनी हार का बदला लेने के लिए तैयारी करने लगा। तबक़ात-ए नसीरी(पुस्तक), के अनुसार उन्होंने अगले कुछ महीनों में 1,20,000 चुनिंदा अफ़गान, ताजिक और तुर्क घुड़सवारों की एक बेहतरीन सेना इकट्ठा कर ली। इसके बाद उन्होंने जम्मू के विजयराजा की मदद से मुल्तान और लाहौर होते हुए चौहान राज्य की ओर बढ़ने लगे।
•अपने ही कई सारे हिंदू पड़ोसी राजाओं से किए गए युद्धों के कारण कोई भी पृथ्वीराज चौहान की मदद को आगे नहीं आया, क्यों की अपने शासन के शुरुआती दौर में पृथ्वीराज चौहान कई पड़ोसी राज्यों से युद्ध कर चुके थे।
फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने एक बड़ी सेना को तैयार करने में कामयाबी हासिल कर ली थी।
•गौरी ने अपने ग़ज़नी स्थित भाई ग़ियास-उद-दीन से राय-मशविरा लेने के लिये समय लिया। उसके बाद ही उसने अपने बल का नेतृत्व किया और चौहानों पर हमला किया। उन्होंने पृथ्वीराज को निर्णायक रूप से हराया। पृथ्वीराज ने एक घोड़े पर भागने की कोशिश की लेकिन सरस्वती किले (आधुनिक सिरसा) के पास उन्हें पकड़ लिया गया। इसके बाद, ग़ोरी ने कई हजार सैनिकों की हत्या करने के बाद अजमेर पर कब्जा कर लिया। कई और लोगों को गुलाम बना लिया।
गोरी द्वारा बंदी बनाए जाने के बाद, पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु 1192 ईस्वी में हुई। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी वीरता और संघर्ष की गाथाएं जनमानस में जीवित रहीं है। उनके बलिदान और साहस ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
पृथ्वीराज रासो का दावा है कि पृथ्वीराज को एक कैदी के रूप में ग़ज़नी ले जाया गया था और अंधा कर दिया गया। यह सुनकर, कवि चंद बरदाई ने गज़नी की यात्रा की और ग़ोरी को चकमा दिया जिसमें पृथ्वीराज ने गौरी की आवाज़ की दिशा में तीर चलाया और उसे मार डाला। कुछ ही समय बाद, पृथ्वीराज और चंद बरदाई ने एक दूसरे को मार डाला। यह एक काल्पनिक कथा है, जो ऐतिहासिक साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं है:
पृथ्वीराज को समर्पित कई स्मारक का निर्माण अजमेर और दिल्ली में किया गया है। उनके जीवन पर कई फिल्में और टेलीविजन धारावाहिक बने हैं। इनमें हिन्दी फिल्म सम्राट पृथ्वीराज चौहान और हिन्दी टेलीविजन धारावाहिक धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान (2006-2009) शामिल हैं।
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