"सुल्तान सलाउद्दीन" अय्यूबी" का जन्म एक कुर्द परिवार में 1137 या 1138 में तिकरित, इराक में हुआ था, इनके जन्म के साल को लेकर इतिहासकारों में कुछ मदभेद है उनके पिता (वालिद), नज्म-अद-दीन अय्यूब, "अय्यूबिद राजवंश" के संस्थापक थे।
• सलाउद्दीन अय्यूबी का राजनीतिक और सैन्य करियर तब शुरू हुआ था जब वो अपने चाचा, "असद-अद-दीन शिरकुह" के साथ फातिमिद खिलाफत के खिलाफ अभियानों में शामिल हुए थे । शिरकुह की मौत के बाद, सलाउद्दीन ने 1169 में मिस्र के वजीर का पद संभाला और कुछ ही समय में फातिमिद खिलाफत का खात्मा कर दिया, जिसके बाद अय्यूबिद राजवंश की स्थापना हुई।
• सलाउद्दीन अय्यूबी प्रमुख मुस्लिम शासक और योद्धा थे, और क्रूसेड्स के दौरान उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
• सुल्तान सलाउद्दीन अय्यूबी उत्तरी इराक के रहने वाले थे।उस समय के देश सीरिया और मिस्त्र (शाम)।
सीरिया और मिस्त्र के सुल्तान नुरुद्दीन जंगी की मौत के बाद उनके दो भाई शासन करने लगे ,लेकिन जब एक के बाद एक दोनों भाइयो की मौत हो गई तब नुरुद्दीन जंगी का सबसे वफ़ादार और करीबी सलाउद्दीन अय्यूबी को शासक बनाया गया।
• सलाउद्दीन अय्यूबी ने सन् 1187 में जब येरुशलम पर विजय प्राप्त करी तो पोप के बुलावे पर इंग्लैंड का बादशाह "रिचर्ड दा लाइन हार्ट" (Richard the Lionheart) जो फ्रांस का बादशाह था और जर्मनी का बादशाह "फ्रेडरिक" (Frederick Barbarossa) की सेना ने सलाउद्दीन अय्यूबी की सेना पर हमला किया लेकिन सलुद्दीन अय्यूबी ने अलग अलग युद्धों में फ्रेडरिक की सेनाओ को हरा दिया।
सलाउद्दीन अय्यूबी जितने बड़े योद्धा थे, उतने ही समझदार और ईमानदार शासक भी थे। इसके साथ ही इंसाफ पसन्द और रहम दिल भी थे। यही कारण है कि यूरोप के इतिहासकार भी उनके सम्मान और महानता में प्रशंसा करते है, और उनका नाम पूरे सम्मान के साथ लेते हैं।
• यरूशलेम की विजय:
सलाउद्दीन अय्यूबी का सबसे प्रसिद्ध काम सन् 1187 में यरूशलेम की विजय था। हित्तिन की लड़ाई में फ्रैंकिश क्रूसेडर सेना को बुरी तरह हराने के बाद, सलाउद्दीन अय्यूबी ने यरूशलेम पर कब्जा कर लिया। इस जीत ने उन्हें इस्लामिक दुनिया का हीरो बना दिया इसके बावजूद उन्हें ईसाई यूरोप में भी सम्मान मिलता रहे।
• एक युद्ध में जब इंग्लैंड के शासक "रिचर्ड" ने मुसलमानों से अकरा का किला जीत लिया उसके बाद मुस्लिम सेना ने किले को चारों तरफ से घेर लिया और युद्ध आरंभ हो गया , उसी समय रिचर्ड बीमार पड़ गया और कोई अच्छा हकीम (वैद्य)नहीं मिल रहा था ,तब सलाउद्दीन ने अपने हकीम को दवाइयों के साथ "रिचर्ड" के पास भेजा और उसका पूरा इलाज करवाया।
• बारहवीं सदी के अंत में उनके अभियानों के बाद ईसाई-मुस्लिम द्वंद्व में एक ज़बरदस्त निर्णायक मोड़ आया और जेरुशलम के आसपास कब्जा करने आए यूरोपी ईसाईयों का सफाया हो गया। क्रूसेड युध्दो में ईसाईयों को हराने के बावजूद उनकी यूरोप में छवि एक कुशल योद्धा तथा रहम दिल सैनिक की तरह है।
• सलाहुद्दीन अय्यूबी ने इस फ़तह का जश्न मनाने की बजाय हमले जारी रखने और तीन क़स्बों को क़ब्ज़े में लेने पर ध्यान दिया, इनमें ग़ज़ा (Gaza Strip) का मशहूर क़स्बा भी शामिल था। उसी क़स्बे के ग आस पास एक रोज़ सलाहुद्दीन अय्यूबी अमीर जावा अल असदी के खेमें में दोपहर के वक़्त सुस्ता रहे थे। उन्होंने अपनी वो पगड़ी नहीं उतारी थी जो मैदान ए जंग में उनके सर को सहरा के सूरज की गर्मी और दुश्मन की तलवार से महफ़ूज़ रखती थी।
सलाउद्दीन अय्यूबी पर जानलेवा हमला:
• खेमें के बाहर उनके मुहाफ़िज़ों का दस्ता मौजूद था। बाडी गार्ड्स के इस दस्ते का कमांडर ज़रा सी देर के लिए वहां से कहीं चला गया था।
एक मुहाफ़िज़ ने सलाहुद्दीन अय्यूबी के खेमें के गिरे हुए पर्दों में से झांक कर देखा, उस समय सलाउद्दीन अय्यूबी सो रहे थे, उस मुहाफ़िज़ ने बाडी गार्ड्स की तरफ देखा जैसे आंखों ही आंखों में कोई बात हो रही हो, उनमें से तीन चार बाडी गार्ड्स ने उसकी तरफ देखा, और फिर मुहाफ़िज़ ने अपनी आंखें बंद करके खोलीं। तीन चार मुहाफ़िज़ उठे और दूसरों को बातों में लगा कर खेमें में चला गए, कमर बंद से खंजर निकाला दबे पाँव चला और फिर चीते की तरह सोए हुए सलाहुद्दीन अय्यूबी पर छलांग लगा दिया। ख़ंजर वाला हाथ अभी ऊपर ही उठा था, ठीक उसी वक़्त सलाहुद्दीन अय्यूबी ने करवट बदली।
ये नहीं बताया जा सकता कि वो मुहाफ़िज़ खंजर कहां मारना चाहता था, दिल में या सीने में मगर हुआ कुछ यूं के खंजर सलाहुद्दीन अय्यूबी की पगड़ी के किनारी हिस्से में लग गया और सर से बाल बराबर दूर रहा। पगड़ी सर से उतर गई, लेखी वो खंजर पगड़ी में ही फंस गया। सलाहुद्दीन अय्यूबी बिजली की तेज़ी से उठे। उन्हें ये समझने में देर न लगी के ये सब क्या है क्योंकि उन पर इस से पहले ऐसे ही दो हमले और हो चुके थे। उन्होंने इस पर भी हैरत का इज़हार न किया के हमलावर उनके अपने बाडी गार्ड्स के लिबास में था जिसे उन्होंने ख़ुद अपने बाडी गार्ड्स के लिये चुना था। उन्होंने ज़रा सा भी समय बर्बाद न किया क्यों कि हमलावर उसकी पगड़ी से खंजर खींच रहा था।
सलाउद्दीन अय्यूबी ने हमलावर की थुड्डी पर पूरी ताक़त से घूंसा मारा, हड्डी टूटने की आवाज़ सुनाई दी। घूंसा पड़ते ही हमलावर का जबड़ा टूट गया था। वो पीछे को जाकर गिरा और उसके मुँह से हैबतनाक आवाज़ निकली। उसका खंजर सलाहुद्दीन अय्यूबी की पगड़ी में रह गया था। तुरंत ही सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपना खंजर निकाल लिया। इतने में दो मुहाफ़िज़ दौड़ते अंदर आये। उनके हाथों में तलवारें थीं। सलाहुद्दीन अय्यूबी ने उन दोनों से कहा कि इसे ज़िन्दा पकड़ लो मगर ये दोनों मुहाफ़िज़ सलाहुद्दीन अय्यूबी पर ही टूट पड़े। सलाहुद्दीन अय्यूबी ने खंजर से एक साथ दो तलवारों का मुक़ाबला किया मगर ये मुक़ाबला एक दो मिनट का था क्योंकि सभी बाडी गार्ड्स अंदर आ गये थे। अय्यूबी ये देख कर हैरान और दंग रह गए कि उनके बाडी गार्ड्स दो हिस्सो में बंट चुके थे और एक दूसरे को जान लेवा हमला कर रहे थे।
उस समय उन्हें ये मालूम ही नहीं था कि कौन अपना है और कौन दुश्मन है, वो इस मोरके लड़ाई में शरीक न हुए। कुछ देर बाद जब बाडी गार्ड्स में से कुछ मारे गये, कुछ भाग गये और कुछ ज़ख़्मी होकर बेहाल हो गये तब यह राज़ खुला की इस दस्ते में जो सलाहुद्दीन अय्यूबी की हिफ़ाज़त पर तैनात था, उनमें से सात मुहाफ़िज़ फ़िदाई थे जो सलाहुद्दीन अय्यूबी को खत्म करना चाहते थे।
• वो पूरा मामला समझ गए । उन्होंने अपने पहले हमलावर के गले पर तलवार की नोंक रख कर पूछा कि बता तुझे किसने भेजा है और तू कौन है। सच बोलने के बदले सलाहुद्दीन अय्यूबी ने उसेसे जान बक़्शी का वादा किया। उसने बता दिया कि वो फ़िदाई है और उसे कैमेश्तकिन जिसे कई इतिहासकारों ने गोमश्तगीन लिखा है ने इस काम के लिए भेजा था। कैमेश्तकिन अल सालेह के एक क़िले का गवर्नर था।
निधन (इंतेकाल):
सलाउद्दीन अय्यूबी का निधन ( इंतेकाल) 4 मार्च 1193 को दमिश्क में हुआ। उनकी मौत की वजह बुखार या किसी दूसरी बीमारी को बताया जाता है। सलाउद्दीन की मौत के बाद, उन्हें दमिश्क में ही दफनाया गया।
सलाउद्दीन का मकबरा। यह दमिश्क, सीरिया में उमय्यद मस्जिद के पास है। यह मकबरा सलाउद्दीन की निधन के तीन साल बाद 1196 में बनाया गया था।.
• सन् 1898 में जर्मनी के राजा विलहेल्म द्वितीय ने सलाउद्दीन की कब्र को सजाने के लिए पैसे भी दिए थे, क्यों की सलाउद्दीन ने अपने जीवन में भले ही कई युद्ध किए हों लेकिन वो कभी किसी के साथ न इंसाफी नहीं करते थे, और युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद भी दुश्मनों से किए गए समझौतों का पालन करते थे।
• उनकी मृत्यु के समय उनके पास कुछ दिरहम ही थे जबकि उनकी आखिरी इच्छा थी के वो हज कर सके लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे के वो हज करने जा सके , वह अपनी ज़्यादातर कमाई को लोगो की भलाई के लिए खर्च कर देते थे। उनकी मृत्यु के समय क्रिया-कर्म (अंतिम संस्कार) भी उनके मित्रो ने मिलके करवाया था । सलाउद्दीन अय्यूबी की पशोहरत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज तक फिलिस्तीन के बच्चे उनकी हिम्मत और जुर्रत को याद करते हुए कहते हैं -
" नाह नू उल मुसलमीन ,कुल्लू नस सलाउद्दीन"
इसका अर्थ है कि (हम मुसलमानों के बेटे है और हममे सब सलाउद्दीन है)।
विरासत:
सलाउद्दीन को एक महान योद्धा, एक इंसाफ पसन्द शासक और एक सादगी पसन्द इंसान के रूप में याद किया जाता है। उनकी इज़्ज़त आज भी इतिहासकारों और आम लोगों के दिलों में ज़िन्दा है, वे मध्य युग के सबसे सम्मानित और प्रशंसित नेताओं में से एक माने जाते हैं।
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