दशरथ माँझी एक बहुत ही पिछड़े इलाके से आते हैं, इलाके के इलावा वो "मुसहर भुइयां" जाती के हैं। मुसहर भुइयां जाती भारत के सबसे निचले स्तर पर आती है , जिसे (SC) में शुमार किया जाता है। इन्हे "Mountain Man" नाम से भी बुलाया जाता है।
• शुरुआती दौर में दशरथ मांझी आज उनकी जाति के लोगों को अपना हक मांगने के लिए भी लंबा संघर्ष करना होता था। दशरथ मांझी का गांव ऐसी जगह पर था जहां से पास के कस्बे (Town) में जाने के लिए भी एक पूरा पहाड़ चढ़ कर उतरना होता था। उस पहाड़ का नाम "गहलोर पर्वत" था। दशरथ मांझी के गांव के लोग छोटी छोटी चीजों को अपने घरों तक लाने के लिए बहुत तकलीफ उठाते थे।
• उनके गांव में न बिजली थी और न ही पानी की कोई सहूलत। ऐसे में हर चीज़ के लिए उन सभी को पूरा गहलोर पर्वत चढ़ कर उतरना होता था या फिर नीचे से ही उसका पूरा चक्कर लगा कर रास्ता तय करना होता था।
• दशरथ मांझी जी की शादी फाल्गुनी देवी से हुई थी, वो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे, दोनो पति पत्नी एक दूसरे पर जान छिड़कते थे, गरीबी और परेशानियों के बाद भी फाल्गुनी देवी अपने पति से शिकायत नहीं करती थी, और पूरा सम्मान करती थी।
एक हादसे ने बदल दी पूरी ज़िंदगी: एक दिन फाल्गुनी देवी गहलोर पर्वत के एक किनारे पर लकड़ियां काट रही थी तभी वो फिसल कर नीचे गिर पड़ी, बाज़ार जा कर दावा लाना आसान नही था, इस लिया जख्मों से चूर फाल्गुनी देवी समय पर इलाज न मिलने के कारण ज़िंदगी और मौत की जंग में मौत से हार गई।
• फाल्गुनी देवी के निधन से दशरथ मांझी बहुत ज़्यादा दुखी हुए, उन्हें इस बार का मलाल था की अगर समय पर किसी अस्पताल पहुंच जाते तो आज उनकी पत्नी उनके साथ होती, और तभी उन्होंने एक ऐतिहासिक फैसला लिया, उन्हें इस बात को समझने में ज़्यादा समय नही लगा की आखिर उनकी पत्नी की मौत का असल कारण पहाड़ से गिरना नही बल्कि समय पर इलाज न मिलना था। इस घटना के बाद दशरथ मांझी ने ठान लिया था की अब वो अकेले ही कुछ ऐसा कर जाएंगे जिस बारे में किसी ने सोचा भी नही होगा। उन्होंने गहलोर पहाड़ी की ओर देखा और मन में कहा अब इसे टूटना ही होगा।
• एक सुबह अकेले ही एक ऐसे मिशन पर निकल पड़े की 22 सालों तक पीछे मुड़ कर नहीं देखा। सिर्फ छीनी और हथौड़ी के सहारे उन्होंने ने अपने मिशन की शुरुआत की वो मिशन था (360-फुट-लंबा, 25-फुट-गहरा, और 30-फुट-चौड़ा) गहलोर पहाड़ को काट कर रास्ता बनाने का। ये काम इतना आसान नहीं था जितनी आसानी से हमने लिखा और आपने पढ़ा, इस काम को पूरा होने में अभी 22 सालों का समय लगने वाला था। उन्होंने बिना किसी मशीन के अपने हाथों से ही ही पहाड़ को तोड़ने का काम शुरू कर दिए, दिन हफ्तों में बदले, हफ्ते महीनो में, और महीने साल में, बारिश, धूप, और ठंड कोई भी दशरथ मांझी के हौसलों को तोड़ न सकी बल्कि तोड़ने में लगे रहे दशरथ मांझी उस पहाड़ के गुरूर को।
• साल 1960 में उन्होंने पहाड़ तोड़ना शुरू किया था और साल 1982 तक उन्होंने वो कर दिखाया जिसे आज भी दुनिया देख कर हैरान रह जाती है। उनके द्वारा बनाई गई सड़क " गया ज़िला" के अत्रि और "वज़ीरगंज सेक्टर्स" की 55 किलोमिटर की दूरी को कम कर 15 किलोमिटर कर दिया। उनके अकेले और 22 सालों की मेहनत ने पूरे 40 की एक्स्ट्रा दूसरी को खत्म कर दिया।
गहलोर पहाड़ को काट कर दशरथ मांझी ने इसी सड़क का निर्माण किया है।दशरथ मांझी ने बताया था, जब वो पहाड़ तोड़ना शुरू किए थे तब उनके गांव वाले उनका मज़ाक उड़ाया करते थे उन्हें तरह तरह के ताने मारते थे। पर कुछ गांव वाले ऐसे थे जो उनके मकसद और जज़्बातों को समझते थे, उन लोगों ने उन्हे खाना पानी दिया, पहाड़ तोड़ना के लिए नए औजार खरीदने में भी मदद की।
निधन: 17 अगस्त 2007 के रोज़ "अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान" (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित माँझी का 78 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ बिहार राज्य सरकार ने किया।
दशरत मांझी की कहानी हमे, प्रेम, जुनून और साहस की प्रेरणा देती है, वो हमे सीखा कर चले गए की अगर हमने कुछ करने की ठान ली तो हम कर सकते हैं, फिर कोई भी चीज़ हमे हमारे मकसद को पूरा करने से रोक नही सकती।
1 टिप्पणियाँ
Such a nice story 👍
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