उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक अमीर मुस्लिम परिवार में ख्वाजा अब्दुल हमीद जी का जन्म 31 अक्टूबर 1898 को हुआ। उनके पिता जी नाम ख्वाजा अब्दुल अली और माता जी का नाम मसूद जहां बेगम हैं।
• ख्वाजा अब्दुल हमीद ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपना ग्रेजुएशन पूरा किए। उस समय भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी, लेकिन उस समय जो भारतीय अमीर हुआ करते थे वो विदेशों में जा कर पढ़ाई कर सकते थे।
• ख्वाजा अब्दुल हमीद जी माता पिता भी चाहते थे कि उनको विदेश भेजा जाए और इंगलैंड से बैरिस्टर की डिग्री हासिल कर भारत में उनका बेटा देशहित में काम करे। लेकिन ख्वाजा अब्दुल हमीद जी को बैरिस्टर नही बनना था। फिर भी वो अपने माता पिता को कुछ कह न सके।
• साल 1920 आ चुका था, उनके माता पिता ने उन्हे इंगलैंड जाने वाली पानी की जहाज़ से इंग्लैंड के लिए रवाना किया, उन्होंने सभी को अलविदा कहा और इंगलैंड के सफर पर निकल पड़े, लेकिन आधी दूरी तय करने के बाद उन्होंने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला लिया, अपने सफर के बीच में उन्होंने अपनी जहाज़ बदली और जर्मनी के लिए रवाना हो गए। जर्मनी से उन्होंने रासायनिक विज्ञान की पढ़ाई की और अपनी डिग्री लेकर भारत वापस आ गए।
• बर्लिन में उनकी मुलाकात एक लिथुआनियाई यहूदी समाजवादी लड़की से हुई, दोनो को एक दूसरे से प्रेम हो गया फिर उन्होंने अपनी प्रेमिका से जिनसे शादी कर ली ।
भारत के लिए योगदान: साल 1935 में उन्होंने केमिकल, इंडस्ट्रियल एंड फार्मास्युटिकल लेबोरेटरीज की स्थापना की। इनकी कंपनी ने 1937 में उत्पादन शुरू किया और इसे भारत की सबसे पुरानी दवा कंपनी बना दिया।
• ख्वाजा अब्दुल हमीद अपनी कंपनी द्वारा दवाइयां बनाने में लगे रहे, देश की आज़ादी और बटवारे का समय करीब आने लगा। ये महत्मा गांधी और जवाहाल नेहरू के विचारों को फॉलो करते थे। इनका मकसद था की भारत के लोगों को काम कीमत पर अच्छी दवाइयां दी जाए।
• भारत और पाकिस्तान का बटवारा: ख्वाजा अब्दुल हमीद एक बहुत ही पढ़े लिखे, सुलझे हुए और देश प्रेमी वेयक्ती थे, उन्हें अपने वतन से बहुत मोहब्बत थी, वो हर समय भारत को विकास करते हुए और भारतीयों को स्वस्थ् देखना चाहते थे।
• पाकिस्तान बनते समय जिन्ना चाहते थे की ख़्वाजा अब्दुल हमीद उनके साथ पाकिस्तान चले, क्यों की us समय पाकिस्तान को सफल और अमीर मुसलमानों की बहोत ज़्यादा ज़रूरत थी, लेकिन ख्वाजा अब्दुल हमीद ने एक सच्चे हिंदुस्तानी मुसलमानों होने का हक अदा करते हुए जिन्ना को इनकार किया और गांधी के भारत के समर्थन में भारत में रहने का फैसला किया।
• ख्वाजा अब्दुल हामिद एक महान प्रोफेसर और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की कार्यकारी परिषद के सदस्य बने, इसके साथ बॉम्बे विश्वविद्यालय (Mumbai University) के सीनेट के सदस्य और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ केमिस्ट्री , में भी अपना योगदान दिया।
• डॉ ख्वाजा अब्दुल हमीद का 1972 में एक बीमारी के बाद निधन हो गया। उनके निधन के बाद Cipla की कमान उनके बेटे यूसुफ हामिद ने संभाली। यूसुफ हामिद सिप्ला कंपनी में आरएंडडी अधिकारी के तौर पर शामिल हुए थे। उनकी निगरानी ने, कंपनी की ज्यादातर दवाओं को यूएसए की एफडीए स्वीकृति मिली। 1990 के दशक में, सिप्ला ने एक बड़ी सफलता हासिल कर ली, सिप्ला ने तीन एंटी-रेट्रोवायरल दवाओं को एक खुराक में मिलाया। साल 1991 में, कंपनी ने भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ साझेदारी में कैंसर कीमोथेरेपी में सफलता हासिल कर ली।
• इस प्रकार ख़्वाजा अब्दुल हमीद जी की सिप्ला कंपनी आज भी अपने उसी मकसद से काम कर रही है जिस मकसद को लेकर इसके संस्थापक ने कंपनी की शुरुआत की थी।
1 टिप्पणियाँ
Very useful information about the great person
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